जीवद्रव्य (Protoplasm) सम्पूर्ण Notes in Hindi
- कॉसी (Kossi) ने सर्वप्रथम देखा।
- दुगोंन ने इसे सार्कोडल नाम दिया।
- पुरकिने ने जीवद्रव्य नाम दिया।
- वॉन मौल ने जीवद्रव्य का महत्व बताया।
- स्ट्रास ने जीवद्रव्य के गठन का उच्चार बताया।
प्रवाहिक गतियाँ
1. जीवद्रव्य भमन (Cyclosis) → जीवद्रव्य का विभिन्न दिशाओं में सभी ओर गति करना।
यह दो प्रकार की होती हैं:
(1) वृत्तगति (Rotational movement)
– जब जीवद्रव्य कोषिका में विभिन्न कोशांग एक ही दिशा में गति करते हैं।
उदा.– हाइला की पत्ती में।
3. परिवहन (Transportation)
– जब जीवद्रव्य कोषिका में कई दिशाओं में चारों ओर विभिन्न दिशाओं में गति करता है।
उदा.– रेडियोस्क्लेरिया (पादप)
उत्तिक्षेप गति
जब जीवद्रव्य कुंडलकों के द्वारा गति करता है।
उदाहरण – अमीबा
पक्षमार्गीय गति
जब जीवद्रव्य सिरिया के द्वारा गति करता है।
उदाहरण – ब्लेफरोमोनास
जीवद्रव्य के भौतिक गुण
- जीवद्रव्य द्रव्यान (Fluid), चिपचिपापन (Viscosity), लोच (Elasticity), आकुंचन (Contractibility) की गुणधर्म गति, टिकल प्रभाव दिखाता है।
- जब जीवद्रव्य पर दरादन (Pressure) डाला जाता है तो उसके कण अलग होकर निकला हुआ द्रव झीलित दिखाई देता है या उनका विचलन कर देता है। जिसे टिकल प्रभाव कहते हैं।
- जीवद्रव्य का pH = 5.8 से 8.5 होती है।
रासायनिक गुण
- जीवद्रव्य में जल 70–90% पाया जाता है।
- प्रोटीन 7–14% पाया जाता है।
- लिपिड 1–3% पाया जाता है।
रासायनिक संरचना (जारी)
- कार्बोहाइड्रेट – 1–2%
- लवण (Salts) – 1%
- DNA – 0.4%
- RNA – 0.7%
Notes
- जेलियम पार्थी में जीवद्रव्य में जल 95% होता है।
- प्रोटीन अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है।
- जीवद्रव्य में CHON सर्वाधिक 96% भाग बनाते हैं। (जिन्हें प्राइमरी एलिमेंट / प्राथमिक मुख्य तत्व primary work element कहते हैं।)
- अंगूर कोशिका द्रव में क्लोरीन सर्वाधिक पाया जाता है।
- तिलहन कोशिका द्रव में सोडियम सर्वाधिक पाया जाता है।
- शुष्क बीज में जल की मात्रा 7–12% पाई जाती है।
ऊर्जा (Energy)
- ऊर्जाकारी कारक → वसा
- तत्क्षण ऊर्जाकारक → ग्लूकोज (C₆H₁₂O₆)
- कार्बोहाइड्रेट तथा वसा ऊर्जा देने वाले पदार्थ होते हैं।
निर्गत पदार्थ (Excretory substances)
जीवित कोशिकाओं में व्यय होने वाली विभिन्न जैविक क्रियाओं से उत्पादित अपाच्य वस्तुओं (waste materials) को बाहर या माध्यम प्रदान करता है। इन वस्तुओं (निर्गत पदार्थों) के निष्कासन क्रिया पतियों का निष्कासन (excretion) कहलाता है।
संचित पदार्थ कोशिकाओं में पाए जाते हैं।
इनके उपयोग के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है –
- 1. संचित पदार्थ
- 2. उत्सर्जी पदार्थ
- 3. स्रावी पदार्थ
संचित पदार्थ
जीविका द्वारा संग्रहित ऊर्जा पदार्थ मुख्यतः आपातकाल में काम आते हैं।
संचित पदार्थ तीन प्रकार के होते हैं:
- 1. कार्बोहाइड्रेट
- 2. वसा
- 3. प्रोटीन
(1) कार्बोहाइड्रेट
ये कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन के संयुक्त यौगिक होते हैं।
इनका अनुपात CHO (1 : 2 : 1) में होता है।
- अधिकतर कार्बोहाइड्रेट जल में घुलनशील तथा स्वाद में मीठे होते हैं, जिसे शुगर (चीनी) कहते हैं।
- ये ऊर्जा के मुख्य स्रोत होते हैं, जिनसे लगभग 60–80% ऊर्जा प्राप्त होती है।
कार्बोहाइड्रेट के प्रकार
(1) मोनोसैकेराइड (Monosaccharides)
- ये सबसे सरल कार्बोहाइड्रेट होते हैं।
- इनका जल अपघटन (Hydrolysis) नहीं होता।
कार्बन के आधार पर मोनोसैकेराइड – ट्रायोज़ (3-carbon)
उदाहरण: PGA (Phospho Glyceric Acid) PGAL (Phospho Glyceraldehyde) DHA (Dihydroxy Acetone Phosphate)
- टेट्रोस शुगर – C₄H₈O₄
- उदाहरण – एरिथ्रोस
- पेंटोज़ शुगर (Pentose Sugar) – C₅H₁₀O₅
उदाहरण:
- D – राइबोज़ (Ribose) – RNA में पायी जाती है
- जाइलोज़ (Xylose)
- एराबिनोज़ (Arabinose)
- मिथाईल ग्लूकोज (Methyl Glucose / Xylulose)
हेक्सोज़ शुगर (Hexose Sugar) – C₆H₁₂O₆
उदाहरण:
ग्लूकोज (Glucose – C₆H₁₂O₆)
फ्रुक्टोज़ (Fructose)
गैलक्टोज़ (Galactose)
मेनोज़ (Mannose)
ऑनेमोज़ (Chromose)
ग्लूकोज
- ग्लूकोज को Grapes Sugar या Human Blood Sugar या Anglican Sugar का स्त्रोत (source) कहा जाता है।
- Normal Blood Sugar = 82–120 mg % होता है।
- ग्लूकोज की मात्रा रक्त में बढ़ने पर हाइपर ग्लाइसेमिया (Hyperglycemia) कहलाता है।
- यह इंसुलिन हार्मोन की कमी को दर्शाता है, जिससे Diabetes Mellitus रोग होता है।
फ्रुक्टोज़ शुगर
- यह फलों में सबसे मीठी शुगर पायी जाती है।
- इसे Fruit Sugar भी कहते हैं।
- यह मधुमेह के रोग में उपयोगी है क्योंकि यह धीरे-धीरे अवशोषित होती है।
थ्रोज़- पेन्टोज़ शुगर C₇H₁₄O₇
उदाहरण – प्सूडो पेन्टोज़ (Pseudo heptulose)
2. डाईसैकेराइड्स
- ये दो मोनोसैकेराइड की इकाइयों से मिलकर बने होते हैं।
- इनका जल अपघटन (Hydrolysis) होता है।
- अधिकांश ये भी स्वाद में मीठे होते हैं।
डाईसैकेराइड के उदाहरण
- माल्टोज़ (Maltose) – ग्लूकोज + ग्लूकोज
- सुक्रोज़ (Sucrose) – ग्लूकोज + फ्रुक्टोज़
- लैक्टोज़ (Lactose) – ग्लूकोज + गैलेक्टोज़
महत्वपूर्ण तथ्य
- माल्टोज़ स्तनधारी प्राणियों में मधुरकारी शर्करा होती है। इसे माल्ट शुगर कहा जाता है।
- सुक्रोज़ को वाणिज्यिक शुगर (Commercial sugar) कहते हैं तथा गन्ने की डंठलों में पायी जाती है।
- लैक्टोज़ को मिल्क शुगर कहा जाता है।
Note
- लैक्टोज़ सबसे अधिक मानव के दूध में पायी जाती है।
- केसीन प्रोटीन (Casein Protein) के कारण दूध सफेद दिखाई देता है।
3. पॉलीसैकेराइड्स (Polysaccharides / Milleosaccharides)
- ये अनेक (कम से कम 10) मोनोसैकेराइड इकाइयों से मिलकर बनते हैं।
- इनमें जल अपघटन धीरे से मुक्त रूप में तीन रूप होते हैं।
- इनका निर्माण 10 या उससे अधिक मोनोसैकेराइड की अवधि से होता है।
उदाहरण
· स्टार्च (Starch)
· सेल्युलोज़ (Cellulose)
· ग्लाइकोजन (Glycogen)
· काइटिन (Chitin)
स्टार्च
यह पादप कोशिका में संचित भोजन है।
सेल्यूलोज़
- यह प्लांट कोशिका की दीवार का मुख्य ढाँचा होता है।
- कॉटन (कपास) में लगभग 90% पाया जाता है।
- यह ग्लूकोज का β-D संरचना युक्त रूप है।
- इसके बहुलकीकरण से रेयॉन (Rayon – कृत्रिम रेशे का प्रकार) बनाया जाता है।
ग्लाइकोजन
- यह Animals कोशिकाओं में संचित होता है।
- क्योंकि यह जन्तु कोशिकाओं में संग्रहीत भोजन है।
- यह आयोडीन के प्रयोग से वायलेट रंग देता है।
काइटिन
- यह Fungi (कवक) की कोशिका भित्ति तथा आर्थोपोड्स के बहिःकंकाल में पायी जाती है।
(B) वसा (Fats/Lipids)
- ये जेल में संचित कार्बनिक पदार्थ होते हैं, जिसका निर्माण CHO से होता है।
- ये जल में अघुलनशील लेकिन कार्बनिक विलायकों में घुलनशील होते हैं।
- ये वसीय अम्ल (Fatty Acids) तथा ग्लिसरॉल (Glycerol) के संयोजन से मिलकर बने होते हैं।
- इनमें कार्बोहाइड्रेट की अपेक्षा अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
सामान्य सूत्र -
Fat (Lipid) = Fatty acid + Glycerol
वसा = वसीय अम्ल + ग्लिसरॉल
संतृप्त वसा
वे वसा जिनमें जमने की प्रवृत्ति होती है।
असंतृप्त वसा + H₂ (Ni या Pd की उपस्थिति में) → संतृप्त वसा
उदाहरण – बनस्पति घी
वसाओं के तीन प्रकार होते हैं:
- सरल वसा
- संयुक्त वसा
- विटामिन वसा
(1) सरल वसा
- इन्हें ट्राईग्लिसराइड्स भी कहते हैं।
- क्योंकि इनके निर्माण के लिए तीन वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल के अणुओं की आवश्यकता होती है।
- इनमें तेल आते हैं।
(2) संयुक्त वसा
- इनका निर्माण वसीय अम्लों, ग्लिसरॉल तथा अन्य कार्बनिक या अकार्बनिक समूहों से होता है।
· फॉस्फोलिपिड्स
· ग्लाइकोलिपिड्स
Note: जीविका में फॉस्फोलिपिड पाया जाता है।
(3) विटामिन वसा
- यह सरल तथा संयुक्त लिपिड से मिलकर बने होते हैं।
रंग के आधार पर वसा का वर्गीकरण
- सफेद वसा (White fat) – कम ऊर्जा उत्पादन
- पीला/भूरा वसा (Yellow/Brown fat) – अधिक ऊर्जा उत्पादन (तेल जैसा रूप)
वसा का महत्व
1. ऊर्जाकारी पदार्थ – 1 ग्राम वसा में 9.3 kcal ऊर्जा।(C) प्रोटीन
· प्रोटीन शब्द सर्वप्रथम बर्जीलियस (Berzelius) द्वारा दिया गया था।
· शरीर भार में प्रोटीन 14–15% होती है, लेकिन सूखे भार में 75% होती है।
· इनमें C, H, O, N के साथ फॉस्फोरस एवं सल्फर भी होते हैं।
· इनका pH मान 7–8 होता है।
· प्रोटीन एमीनो अम्लों के बहुलकीकरण से बनते हैं।
· प्रोटीन लैटिन भाषा का शब्द है।
प्रोटीन के स्रोत
- पेसी में – 20%
- प्लाज्मा में – 7–8%
- दाल – 15–20%
- मूँग दाल – 14–17%
- मूँगफली – 21–25%
- सोयाबीन – 43%
- बादाम – 25%
- क्लोवरीजीन – 63%
- स्कारलेटिन – 65–67%
10 आवश्यक (Essential) अमीनो अम्ल
- लाइसिन
- थ्रियोनिन
- वेलेन
- ल्यूसीन
- आइसोल्यूसीन
- मेथियोनिन
- फेनाइलएलनिन
- हिस्टिडीन
- ट्रिप्टोफैन
Note: - अधिकांश सरल अमीनो अम्ल कोलाइड्सीय अम्ल होते हैं।
सबसे सरल अमीनो अम्ल ग्लाइसिन होता है।
Note: - मिथायोनिन प्रोटीन, ऑरिजिन स्फुरियुक्त अमीनो अम्ल होते हैं।
प्रोटीन में डायपेप्टाइड बन्ध पाया जाता है।
प्रोटीन के प्रकार
(1) साधारण प्रोटीन (Simple Protein)
ये केवल अमीनो अम्लों से बनते हैं।
रेशेदार प्रोटीन (Fibrous protein)
- कोलेजन (Collagen)
- इलास्टिन (Elastin)
- केराटिन (Keratin)
- रेटीन (Retin)
- मायोसिन (Myosin)
- (कंधा, नाखून, केश) में पाया जाता है (मांसपेशियों में एक्टिन प्रोटीन)
गोलाकार प्रोटीन (Globular protein)
- ग्लोब्युलिन (Globulin)
- हीमोग्लोबिन (Hemoglobin – रक्त में)
- एल्बुमिन (Albumin)
- प्रोलेमिन, प्रोलामिन (बीजों में)
- एन्जाइम्स (Enzymes)
रक्त में
Albumin + Globulin = रक्त प्रोटीन
Albumin = लगभग 5.1%
Globulin = लगभग 2.2%
Albumin का कार्य
- परिवहन (Transport)
- प्रतिरोधी (Antibody)
- नियमन (Regulation)
(2) सम्मिश्र प्रोटीन (Conjugated protein)
- न्यूक्लियोप्रोटीन
- क्रोमोप्रोटीन
- ग्लाइकोप्रोटीन
- ग्लाइकोप्रोटीन, फॉस्फोप्रोटीन
प्रोटीन के कार्य
- वृद्धि, विकास एवं संरक्षण करने में सहायता करते हैं।
- ऊतकों की वृद्धि में।
- एण्टीबॉडी निर्माण में।
एन्जाइम पदार्थ
(A) म्यूसलेज
- यह पादपों में स्थित म्यूसलेज कोशिकाएँ कहलाती हैं।
- ये मुलायम मीठे कार्बनिक पदार्थ होते हैं, जिसमें फ्रुक्टोज़, ग्लूकोज एवं गम्रोस होते हैं।
- यह चिपचिपा एवं मुलायम भोजन होता है।
- इस कारण विभिन्न कीट पादपों की रक्षा, बाहरी धूल, परागण में सहायता करते हैं।
(B) एन्जाइम
- ये प्रोटीन प्रकृति के होते हैं।
- ये कार्बनिक पदार्थ हैं जो उपापचयी क्रियाओं के लिए उत्प्रेरक की तरह कार्य करते हैं।
- ये जटिल भोजन पदार्थ को सरल रूप में तोड़ते हैं।
उदाहरण :-
1. माल्टेज़
2. एमाइलेज
3. पेक्टिनेज़
उत्सर्जी पदार्थ
पादपों में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप कुछ रासायनिक पदार्थ का निर्माण हो जाता है, जिसे उत्सर्जी पदार्थ कहते हैं।
- इनको बाहर निकालने या उत्सर्जन जैसी व्यवस्था पादपों में नहीं होती, बल्कि ये पादपों के विभिन्न भागों (पत्ती, फल, तना आदि) में इकट्ठे हो जाते हैं।
- ये पदार्थ कभी हानिकारक तो कभी उपयोगी पदार्थ माने जाते हैं।
उत्सर्जी पदार्थ के प्रकार
1. कार्बनिक (Organic)2. अकार्बनिक (Inorganic)
(1) नाइट्रोजनी (Nitrogenous)
(A) एल्कलॉइड्स (Alkaloids)
- जल में अघुलनीय लेकिन अल्कोहल में घुलनशील होते हैं।
- स्वाद में कड़वे तथा तिक्त होते हैं।
- इनका औषधीय उपयोग अत्यधिक होता है।
मुख्य एल्कलॉइड्स
1. एट्रोपिन (Atropine) - स्ट्रोबेलोडोना की जड़ से प्राप्त होता है।उपचार: आँख की पुतली का प्रसारण बढ़ाने में।
2. निकोटिन (Nicotine) - तम्बाकू की पत्तियों से प्राप्त।
उपचार: निरोधात्मक एवं कार्डियक दर्द में।
(3) मॉर्फिन (Morphine) - पैपवर सोम्नीफेरम (Afim पौधा) के कैप्सूल फल से प्राप्त होता है।
उपचार: दर्द कम करने एवं गंभीर नींद लाने में उपयोग।
(4) कुनैन (Quinine)- सिनकोना वृक्ष की छाल से प्राप्त।
उपचार: मलेरिया रोग के उपचार में उपयोग।
(5) रेसरपिन (Reserpine) - यह रौवोलफिया सर्पेंटाइना (सर्पगंधा) की जड़ से प्राप्त।
उपचार: उच्च रक्तचाप (High BP) कम करने में।
(6) कफीन (Caffeine) -यह कॉफी (Coffee) के बीज से प्राप्त।
उपयोग / उपचार: दर्द कम करने में, तनिका तंत्र की उत्तेजना बढ़ाने में।
(7) टैनिन्स (Tannins) - स्वाद में कड़वे होते हैं।
यह पादप खाल, पत्तियों एवं फलों से प्राप्त होते हैं।
उपयोग: रंग बनाने व औषधियों में।
(8) एलोइन / एलोइनिन (Aloin) - यह एलोवेरा (Aloe barbadensis) की पत्तियों से प्राप्त।
उपयोग: उत्कृष्ट औषधि रूप में, टॉनिक के रूप में।
यह Anticancer दवा के रूप में भी प्रयुक्त।
एंटीबायोटिक –
उदाहरण: पेनिसिलिन (Penicillin)
यह कार्बोहाइड्रेट (Cellulose) से मिलता है।
· जी जी टेलिस पायसुरिया पौधे से डिजिटेलिस नामक दवा तैयार की जाती है, जो हार्ट रोग में उपयोगी है।
· इसका रस देने पर मरे हुए व्यक्ति भी कुछ समय तक जीवित रह सकते हैं।
(B) रेज़िन (Resins)
- · यह वाष्पशील तेलों (Volatile oils) के ऑक्सीकरण से प्राप्त होते हैं।
- · यह जल में अघुलनशील लेकिन अल्कोहल एवं ईथर में घुलनशील होते हैं।
- · रंग बनाने में काम आते हैं।
- · वार्निश बनाने में उपयोगी।
(C) गोंद (Gums)
- · जल में घुलनशील होते हैं।
- · म्यूकोलेज के उत्पादन से प्राप्त होते हैं।
Note:
एकेशिया (Acacia – बबूल पौधा) से प्राप्त गोंद को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
(D) लेटेक्स (Latex)
- · यह सफेद, पीला या भूरे रंग का तरल पदार्थ है, जो लैक्टस वाहिनियों में पाया जाता है।
- · पादप के लेटेक्स में पेपेन (Papain) एन्जाइम पाया जाता है, जो भोजन पाचन में सहायक होता है।
- · केले, पपीता, अनार आदि फल में दूध के समान चिपचिपा पदार्थ पाया जाता है।
- · रबर की लेटेक्स से ही हीविया ब्राजीलिएन्सिस (रबर पौधा) में स्त्रावित वाहिनियों से प्राप्त किया जाता है।
लेटेक्स वाले पौधे
जिन पौधों में लेटेक्स पाया जाता है उन पौधों को पेडिलोफ्रा (Pedilophora) कहते हैं।
जिनके लेटेक्स से पेट्रोलियम बनाये जाने की विपुल सम्भावनाएँ हैं।
उदाहरण: युफोर्बिया, कैलोट्रोपिस, कैलोट्रॉपिया, नेरियम आदि
अकार्बनिक पदार्थ
कुछ पौधों में अकार्बनिक पदार्थ उत्सर्जी / उपापचयी रूप में लवण, मिट्टी, सिलिका, चूना, काष्ठकोशों में पाये जाते हैं।
- · सिलिका
- · पोटेशियम ऑक्सालेट
- · कैल्शियम कार्बोनेट
1. सिलिका
· सिलिका का जमाव कुछ पौधों की कोशिका भित्ति के ऊपर स्केल्स के रूप में होता है।
· उदाहरण – घास की पत्तियों में
2. कैल्शियम कार्बोनेट
· इसका जमाव कोशिका भित्ति पर क्रस्ट (परत) के रूप में होता है।
· उदाहरण – फाइकस (Ficus)
3. कैल्शियम ऑक्सालेट
· यह कई पौधों की मज्जा एवं पारेंकाइमा कोशिका में पाये जाते हैं।
जीवद्रव्य की प्रकृति
(1) कणिकामय सिद्धांत (Granular Theory)
यह बैदान्तर (Bédanter) ने दिया।
उनके अनुसार जीवद्रव्य अनेक सूक्ष्म कणों से बना होता है।
(2) जालीका सिद्धांत (Reticular Theory)
यह हेक्डल (Haeckel), कौलिन तथा क्लार्क ने दिया।
उनके सिद्धांत के अनुसार एक जाल जैसी संरचना होती है
(3) तन्तुमय सिद्धांत (Fibrillar Theory)
यह फ्लेमिंग (Flemming) ने दिया।
उनके अनुसार जीवद्रव्य तंतुओं (फाइबर्स) से बना होता है।
(4) कृत्रिक सिद्धांत (Emulsion Theory / Butchili Theory)
यह बुचिली (Butschli) ने दिया।
उनके अनुसार जीवद्रव्य में अनेक सूक्ष्म द्रव बिन्दुओं से मिलकर कण बनते हैं।

